Saturday, December 5, 2009

ख्वाब

अक्सर कुछ चहेरे मुझे ख्वाब मैं आया करते हैं ,
न जाने क्यों ,बे-वजह ही मुझे आजमाया करते हैं ,
कभी किसी बूढ़े की आंखों में ,
कभी किसी डरे हुए बच्चे की साँसों में ,
वो मुझे कुछ समझाया करते हैं ,
अक्सर कुछ ..............

दिन ढलते हैं ,
मौसम बदलते हैं ,
पर ये ख्वाब नही बदलते ,
यूँ ही कभी रस्ते पर चलते हुए ,
किसी भिकारी के चहेरे पर , ये मुझे अपना संदेशा सुनाया करते हैं ,
अक्सर कुछ .........

मैं नसमझ न समझा , अब तक इनकी जबानी ,
इशारों में इनके , तजुर्बों की कहानी ,
न समझा की ये मुझे क्या समझाया करते हैं ,
अक्सर कुछ .........

इक रात फ़िर वही सपना जब मुझे आया ,
तो मैंने अपना चेहरा ही उस चहेरे मैं पाया ,
वो तो बस 'न भुलाना अपने आपको' ये सिखाया करता था ,
अब मैं समझा की अपना चेहरा ही मुझे ख्वाब मैं आया करता था ॥

Friday, December 4, 2009

अंतर्द्वंद

जिन्दगी बड़ी ही रोचक कहानी है ,चाहे वो किसी की भी हो मेरी या किसी और की हर नया दिन नया पन्ना लगता है ,और हमेशा अगला पन्ना जानने की इच्छा बनी रहती है जब भी जिन्दगी में दो रास्ते जाते हैं ,तो सामान्य आदमी भटक ही जाता है , जो चीज उन्हें भटकने से रोकती है वो है उनका "मूल्यांकन", वो कितना सच बोलते हैं अपने आपसे आदमी दूसरों से झूट बोल सकता है पर अपने आप से नही ,और जिसने अपने आप से झूट बोलना सीख लिया उसका भटकना तो निश्चित है
पिछले कुछ दिनों से जिन्दगी इन्ही तरह के दोराहों से गुजर रही है दिल किसी और को सही कहता है और दिमाग किसी और को पर मैं जान चुका हूँ की दिल सही है या दिमाग ये दिमाग मेरा है और इसने जो समाज में होते देखा है ,वही करना चाहता है ,क्योंकि बदले की भावना इसी दिमाग की उपज है जिसने मेरे साथ जैसा किया उसके साथ वैसा ही करूँ ,चाहे वो अच्छा हो या ग़लत ऐसा नही है की मेरा दिमाग सिर्फ़ ग़लत करने को कहता है ,जिसने मेरे साथ अच्छा किया ,उसके साथ उससे कहीं अच्छा करने को भी यही कहता है
पर ये दिल बड़ा अजीब है ,और सच मानिये कहीं कहीं इस दिल में आपके माँ-बाप संस्कार समाये हुए हैं ,जो आपको एहसास दिलाते रहते हैं की क्या सही है और क्या नही और यहीं से शुरू होता है अंतर्द्वंद दिल और दिमाग का पर सच तो यही है की इस दिल ने कभी झूठ नही बोला ये दिल ही है जो ये कहता है की किसी और के लिए तुम कैसे बदल सकते हो कोई तुम्हारे साथ कुछ भी करे , तुम हमेशा दूसरों के साथ अच्छा करना अगर दूसरों ने तुम्हे बदल दिया तो इसका मतलब है की वो ज्यादा प्रवाभी हैं ,पर क्या ऐसा है ?

तुम इतने प्रवाभी बनो की तुम दूसरों को बदल सको दुसरे तुम्हे नही ......................


Sunday, November 29, 2009

"सब से बड़ा complement "

इसे मैं सिर्फ़ इसलिए लिखना चाहता था , जिससे आने वाले कल से जब मैं अपने आप को मुड़ के देखूँ तो कुछ महसूस कर सकूँ । अक्सर लोग बड़े होते-होते इस दुनिया के हिसाब से ढलने लगते हैं ,अच्छे - बुरे से उन्हें कोई मतलब नही होता ।
खैर ये सब छोडिये मैं आपको उसकी कहानी बताने जा रहा हूँ , जो मेरे लिए आज तक का सबसे बड़ा कोम्प्लिमेंट है । मेरी coaching उस समय सुबह ६ बजे हुआ करती थी । वही coaching के पास एक चाय की दुकान थी सामान्यतः मैं वही पर चाय पिया करता था । उस दिन वो चाय की दुकान बंद थी और मैं थोड़ा जल्दी भी पहुँच गया था , तो मैंने सोचा क्यों न कुछ दूरी पर एक और चाय की दुकान है उस पर जाया जाए । मैं उसकी तरफ़ बढ चला । वो एक बुजुर्ग वृद्ध था जो की सुबह ५ बजे ही अपनी दुकान खोल लिया करता था । मैं पहुँचा चाय पी ,पर्स देखा तो सिर्फ़ १००-१०० क दो नोट थे , अब चाय थी ३ रुपये की उस वृद्ध आदमी के पास इतनी change नही थी उस बेचारे की बोहनी तो मैंने अपनी चाय से ख़राब कर ही दी ,ये उसके चहेरे से साफ़ दिखाई दे रहा था ,अखी क्या करता कह दिया बाद में दे देना । मैंने भी हाँ कह कर अपनी राह ली । सोचता रहा मुझे एक बार पैसे देख लेने थे , फ़िर सोचा कोई बात नही कल दे दूंगा ।
दुसरे दिन फ़िर मैं coaching गया , पर भूल गया । मैं ये बताना तो भूल ही गया मेरी coaching हफ्ते में दो दिन ही रहती है । अब एक हफ्ते बाद की बात हो गई । इस तरह मैं दुसरे हफ्ते भी गया ,और भूलता रहा ।
शायद आप ये सोचें की मेरी नियत ही न रही हो पैसे देने की ,और सोचना वाजिब भी है ,हो सकता है उस वृद्ध आदमी ने भी यही सोचा हो ,पर ये तो मैं ही जनता हूँ ,की ऐसा नही था ,बस मैं भूलता रहा ।
उस दिन न जाने मुझे कैसे याद रहा की आज मुझे उसके पैसे देने हैं ,क्योंकि सच में कहीं न कहीं मुझे ये बात बार - बार याद आती थी । मैं उसकी दुकान पहुँचा ,मैंने पूंछा -" दादा चाय कितने की है" ,असल मैं मुझे ये याद भी नही था की वो ४ रुपये में देता है या ३ रुपये मैं .उसने जवाब दिया -"३ रुपये की" ,और बस चाय भरने लगा । मैं तो चाय पी चुका था और बस पैसे देने ही गया था । पर मैं उसे मना नही कर पाया और चाय पी कर उसे मैंने ६ रुपये दिए और कहा -"दादा मैं एक चाय पहले पी गया था मेरे पास चिल्हर नही थी इसलिए दे नही पाया था ।"
मुझे नही पता की मैंने कोन सा बड़ा काम कर दिया , उसकी आँखों में कुछ अलग बात थी , उसने मुझसे पैसे लिए और कहा - " बेटा मुझे तो याद भी नही की तुम कब पी गए थे ,पर हाँ आज जो तुमने किया है वो कोई मामूली बात नही है ,कितने यहाँ ऐसे ही आते हैं जो केवल चाय पी के चिल्हर न होने का बहाना कर के चले जाते हैं ,पर तुम जैसे कुछ लोगो के कारन हमारा विस्वास आज भी बना हुआ है इस दुनिया में ......."
ना जाने उसने मुझसे क्या कह दिया था पर हाँ बहुत अच्छा लग रहा था ,ऐसा कुछ महसूस हो रहा था की मैंने कोई अच्छा काम किया है ...पर मैंने तो सिर्फ़ अपनी उधारी चुकाई थी ,जो मुझे मेरे मम्मी पापा ने सिखाया है कि बेइमानी कि कोई चीज़ कभी काम नही आती हमेशा इमानदारी से जिन्दगी जीना , और मैंने वही किया बस ।
पर उस वृद्ध कि आँखे मुझसे बहुत कुछ कह गई , बस अब यही चाहत है कि ये तो ३ रुपये कि बात थी ,पर जिन्दगी में यही चाहूँगा कि कभी जब लाखों कि बात हो तब भी में उस वृद्ध कि आँखे याद कर सकूँ ,वो मुझे अच्छा रास्ता ही चुनने में मदद करेंगी ........

आज में बहुत खुस हूँ ...........[:)]

Saturday, November 7, 2009

" तुम्हारे लिए "


हम उनके मुस्कुराने का इंतज़ार करते रहे
जिन्हें मुस्कुराना न था ।
खता उनकी भी क्या कहें
दिल उनका तो ग़मों का खजाना था ।।


तेरी यादों को यादों में सजोंकर ,
मैं बस यादों में ही जीता रहा ।
गिरते हुए आंसुओं को मोती समझा मैंने ,
और मोतियों की चाहत में रोता रहा ।।

3
वो मेरी राहों में काटें बिछाते रहे ,
और हम नदान उनके तरफ़ कदम बढाते रहे ।
वो मेरे जख्मों को देख खुस होते रहे ,
और हम उनकी हँसी में अपना लहू बहाते रहे ।।

4
इन दोस्तों की महफ़िल में ,तुम कुछ अजीब से लगे ,
दूर खढे रहकर भी दिल के कुछ करीब से लगे
अब तो बस दुआ है यही .....
हर किसी को मिले तुझसा दोस्त ,
मुझे कोई बदनसीब सा लगे ।।

Wednesday, November 4, 2009

"प्यार"

प्यार हमारी जिन्दगी में क्या महत्तव रखता है ? यह सवाल आज मेरे मन में जाने क्यों उठा ,और उसका जवाब भी आज जब मैने अपने बारे में सोचा की प्यार मेरी जिन्दगी में क्या है तो जाना की इस पुरी जिन्दगी में प्यार ही तो सब कुछ है एक बच्चा जब इस दुनिया में जन्म लेता है, तो वह रोता है , आँसु बहाता है ,वो प्यार भरी आँखे ही उसके जीवन का कारण होती हैं , जो वो अपने चारो तरफ़ देखता है ये आँख उन माँ-बाप की है जो उसी समय से उसके भविष्य के लिए सपने बुनने लगती हैं ,ये आँख उन दादा-दादी की हैं जो उस बच्चे में अपना बचपन ढूंढने लगती हैं प्यार ही वो चीज़ है जिससे ये दुनिया चल रही है प्यार की खोज में हम अपना जीवन निकल देते हैं लेकिन उस प्यार को नही पहचान पाते जो हमारे चरों तरफ़ व्याप्त है

पर जहाँ तक आज की बात है प्यार के मायने बदल गए हैं ,लोग रुपये -पैसे में प्यार को तोलने लगे हैं ये ग़लत है पर सामयिक स्थितियाँ इसके लिए जिम्मेवार हैं क्या जो लोग गरीब होते हैं वो अपने बच्चों से प्यार नही करते ,करते हैं पर हाँ वे उसे वे सुख- सुविधाएँ नही दे पते जो वो उसे देना चाहते हैं

आज जब दोस्तों यारों बीच जब प्यार की बात होती है ,तो बस लोगो का दिमाग प्यार की एक अलग ही परिभाषा लिखता है उनका मानना है की प्यार तो बस एक लड़का -लड़की के बीच में ही हो सकता है ,पर ये ग़लत है आज जो वो दोस्त साथ बैठे हैं इसकी वजह भी कहीं कहीं प्यार ही है में ये भी नही कहता की एक लड़का लड़की के बीच प्यार नही हो सकता ,हो सकता है पर "प्यार" शब्द सुनते ही हम जो सोचते हैं वो सही नही है प्यार जिन्दगी का सबसे पवित्र रिश्ता है ,क्योंकि ये हर रिश्ते मैं होता है प्यार में हमेशा खुसी ही मिले ये भी जरुरी नही ,क्योंकि ये भी जरुरी नही की आप जिससे प्यार करे वो भी आप से प्यार करे प्यार में कोई लेनदेन भी नही , की आपने ज्यादा प्यार किया और सामने वाले ने आपको कम प्यार किया परोक्ष रूप में देखा जाए तो प्यार का दूसरा नाम त्याग है क्योंकि बिना प्यार के आदमी त्याग नही कर सकता


तो इन सब बातों से हम कह सकते हैं , की प्यार में हँसी ही मिले ये जरुरी नही प्यार में रोना भी पड़ता है ,पर हाँ उन आंसुयों का मजा ही कुछ और होता है जो प्यार के लिए गिरें .....................

Tuesday, September 1, 2009

नारी


आँखे झुकाना इनकी फितरत नही , मज़बूरी है ।

सपने
तो हैं इनके भी आँसमा छूने के ,पर समझोता जरुरी है ।।

हाँ ये कुछ और नही , एक लड़की की कहानी है ।

जिसके दिल मैं दर्द ,और आँखों मे पानी है । ।

लब्ज़ इनके होठों से भी ,अमादा है गिरने को

पर
पीढियों से कमजोर इनकी आत्मा ,मजबूर है डरने को । ।

चाहत है इनकी भी स्वछंद आँसमा में विचरण की

पर
अँधेरा ही हुआ इनके जीवन में ,जब भी उम्मीद दिखी एक किरण की । ।

अब तो ये इक्कीसवी सदी है

पर
फ़िर भी अन्ततः इनके जीवन में निरासा ही बदी है । ।

कितना भी ये समाज बड़ी बड़ी बातें कर ले

पर
फ़िर भी इनकी जिन्दगी तो अधूरी है । ।

आँखे झुकाना इनकी फितरत नही मज़बूरी है.............

ये क्या क्या हो रहा है

ये क्या क्या हो रहा है........  इंसान का इंसान से भरोसा खो रहा है, जहाँ देखो, हर तरफ बस ऑंसू ही आँसू हैं, फिर भी लोगों का ईमान  सो रहा है।  ...