एक आदमी मिटटी से करता है सुरु अपना सफ़र,
और मिटटी मे मिल जाता है ,आखिर जिन्दगी से हर कर।
इस रस्ते मे उसे माँ -बाप मिले और भी मिले कई रिश्ते ,
ये रिश्ते बड़े अनमोल है ,वो मूर्ख है जो इन्हे समझे सस्ते ।
बचपन मे माँ -बाप के साये के साथ उसने सफर किया है सुहाना ,
आज जब वह जवान है तो मुश्किल हो गया है वो सफर भुलाना ।
जिन्दगी से लड़ता हुआ आज जब वह हुआ जवान ,
तो चिंता के रूप मे उसे सताने लगे घर ग्राहस्ती और सामान।
उसके मन मे जोश है ,और वह चाहता है कुछ कर दिखाना ,
ऐसा जिसे देख कर दंग रह जाए सारा जमाना ।
हाँ आज उसने कर ही दिखाया ,
सभी के दिल मे अपना स्थान है बनाया ।
आज वह पहुँच गया है एक ऊँचे स्थान पर ,
तो वे भी उसे अपना रिश्तेदार कहते है ,रहता था वो जिनके माकन पर ।
कल तक वे ही लोग उससे सीधे मुँह करते नही थे बात,
क्योंकि कल तक थी उसके जीवन मे निरासा भरी रात
आज जब सफलता पाते हुए ,उसके जीवन मे आया है उजाला ,
तो वे भी उसके रिस्तेय्दर बन गए जिन्होंने पैसो के लिए उसके घर लगाया था ताला ।
अब उसे मिल रही है पग -पग पर सफलता ही सफलता
तो ऐसा लग रहा है जैसे वह भूल ही गया विफलता ।
पर आज उसे मौत ने है हराया ,
मिटटी से मिटटी का रास्ता है दिखाया ।
आज जब वो जिन्दगी से हारकर जा रहा है शमसान ,
तो शवयात्रा मैं शामिल लोगो को इसमे भी महसूस हो रही है अपनी शान ।
पीयूष वाजपेयी