Wednesday, January 4, 2012

क्या दौर आया ज़माने का , की हिसाब करने वाले बिक गए ,
सच और झूठ क्या है ,ये बताने वाले बदल गए 
आँखों से आँसू ,नहीं छलकते अब ,
क्या कहें मृदु ,शायद आंसुओं के पैमाने बदल गए 
इंसानियत छोड़ ,इन्सान बदल गए ,
उस छोटे से कस्बे में जो दिखते थे घर ,वो माकन बदल गए 
देखता हूँ उनको ,नहीं डरते गलत करने में,
सोचते हैं ,गलत करने के अंजाम बदल गए 
सच्चे हैं जो ,परेशान हुआ करते हैं ,
कोसते हैं ,हमारे तो भगवन बदल गए 
बदलाव का ये क्या मंजर दिखाया तूने ,
देखते देखते लोगों क ईमान बदल गए .....

ये क्या क्या हो रहा है

ये क्या क्या हो रहा है........  इंसान का इंसान से भरोसा खो रहा है, जहाँ देखो, हर तरफ बस ऑंसू ही आँसू हैं, फिर भी लोगों का ईमान  सो रहा है।  ...