संवेदना एक अभिव्यक्ति है ,उन सभी के लिए जो मुझसे किसी न किसी रूप में जुड़े हुए हैं , मेरे परिवारजन ,मेरे मित्रगण और वो तमाम लोग जो परोक्ष में मुझसे जुड़े हुए हैं....
Wednesday, December 17, 2008
इंतजार..........
फासले बहुत हैं ,इन्हे कुछ घटाओ तो जरा ,
हम तो आगे बढ ही चुके हैं ,
पास तुम भी आओ तो जरा ,
आंखों सेआंखों से आँखें....... आँखे मिलाओ तो जर
कितना ही अरसा इंतजार में गुजरा ,
लबों ने भी बस तुम्हे ही पुकारा ,
हाल-ऐ-दिल अपना तुम भी सुनाओ तो जरा ,
आंखों सेआंखों से आँखें आँखें मिलाओ तो जरा .....................
ना जाने तुम रूठे हो क्यों ,
ना जाने तुम्हे डर है क्या ,
दिल में है क्या बताओ तो जरा ,
आंखों से आँखेंआंखों से आँखें मिलाओ तो जरा ..................
ख़वाहिश यही है की तुम्हे हम समझा तो सकेंगे ,
दुश्मन नही दोस्त बना तो सकेंगे ,
अंजाम क्या होगा ,ऐ-खुदा बताओ तो जरा ,
आंखों से आँखें मिलाओआंखों से आँखें तो जरा ...................
पीयूष वाजपेयी
Saturday, October 18, 2008
"मिलन"
मिलन
डूबते हुए सूरज को देख दिल घबराया सा ,
रोशनी गई दूर ,अँधेरा पास आया सा ।
छितिज में अंधेरे और प्रकाश का हो रहा था मिलन ,
कुछ अँधेरा आगे बढ़ा ही की मचलने लगा प्रकाश का मन ।
देखते ही देखते प्रकाश ने अंधेरे का हाथ छोड़ दिया ,
बढता हुआ आगे अपना रास्ता मोड़ दिया ।
रात भर के लिए अंधेरा ,फ़िर हो गया अकेला ,
चारों तरफ़ दिखाई दे रहा था खामोसी का मेला ।
अब अंधेरे को है फ़िर उस सुबह का इन्तजार ,
जब प्रकाश से होगा उसका मिलन फ़िर एक बार ।
पल दो पल के ये मिलन तो हो रहें हैं सदियों से ,
मिलन के इन्तजार में क्या होता है उनका हाल
पूंछो इन पहाडो और इन नदियों से...
पूंछो इन पहाडो और इन नदियों से...
पीयूष वाजपेयी
"बचपन की यादें "
वे तो भुलाये नही भूलतीं हैं । ये वो यादें हैं जिनमे हमने जीवन का असली मजा लिया है । आज हम बड़े हो गए हैं और मैं शायद मेरे जैसे कुछ और भी अपना मुकाम पाने के लिए ,घर के बड़े -बुजुर्गों का सपना पूरा करने के लिए अपने घर से दूर हो गए हैं .... तो ऐसे समय मैं साथ हैं तो बचपन की वो हसीन यादें.....
आज भी मुझे याद आता है अपना वो स्कूल जिसमें मैंने से केजी-१ से ८-वीं तक की पढ़ाई पूरी की । याद आता है उन सहपाठियों का चेहरा जिनके साथ बचपन के अच्छे -बुरे लम्हे बिताये ,याद आती है उन गुरुजनों की जिन्होंने मुझे आज इस स्थान में पहुंचाया । छोटी -छोटी बातों पर ठहाके लगाकर हँसना ,निष्कपट हर बात कह देना ,दोस्तों के गम में दुखी होना और उनकी खुसी में सरीक होना ,छोटी -छोटी बातों पर झगड़ना और बड़े-बड़े झगडों के बाद फ़िर मिल जाना ,लंच होते ही टिफिन खोलकर बैठ जाना और मिल बाँट कर फ़िर खाना । स्कूल से लोटते ही मम्मी -पापा का वो प्यार भरा दुलार ,वो सिर में हाथ फेरना ,होमवर्क कराना ,आज भी याद आती है वो निशचिंत नींद जो मम्मी -पापा के साए में ली थी ।
यादें आँखों में चमक लेकर भी आती हैं और आँशु भी पर हाँ उन आँशुओं का मजा ही कुछ और होता है । वे आँशु साक्षी हैं इस बात के की हम अभी भी अपनी यादों के आधार से जुड़े हैं ,क्योंकि जिसने अपनी यादें गवां दी उसने अपना बचपन गवां दिया और जिसके पास बचपन ही नही उसके पास जीवन ही नही ............
पीयूष वाजपेयी
Thursday, October 16, 2008
यादें
जिन्दगी आज मुझे है किस मोड़ मैं ले आई,
जहां मैं हूँ और है मेरी तनहाई ।
दूर -दूर तक बस दुःख की घटा नजर आती है ,
आँखों से अश्को की धरा बह ही जाती है ।
याद आते हैं वे गुजरे हुए दिन ,
जब हम पल भी न गुजारा करते थे यारों के बिन ।
याद आती हैं ,वे गलियां जिनमे बीता है बचपन ,
आज हम तो यहाँ है ,पर वहीं है हमारा मन ।
जिन्दगी क्यों ऐसे रूप लेकर आती है ,
दो पल की खुसी देकर जीवन भर सताती है ।
सिर पर माँ -बाप का रखा हाँथ नजर आता है ,
याद कर के ही ये दिल तड़पा जाता है ।
याद आती हैं जीवन की वो रस्में ,
याद आती हैं दोस्ती की वो क़समें ।
ये दिल तो बस ग़मों को पीता है ,
याद करके ही ये दिल जीता है ...... ।
पीयूष वाजपेयी
Friday, April 11, 2008
"मिटटी से मिटटी का सफर "
एक आदमी मिटटी से करता है सुरु अपना सफ़र,
और मिटटी मे मिल जाता है ,आखिर जिन्दगी से हर कर।
इस रस्ते मे उसे माँ -बाप मिले और भी मिले कई रिश्ते ,
ये रिश्ते बड़े अनमोल है ,वो मूर्ख है जो इन्हे समझे सस्ते ।
बचपन मे माँ -बाप के साये के साथ उसने सफर किया है सुहाना ,
आज जब वह जवान है तो मुश्किल हो गया है वो सफर भुलाना ।
जिन्दगी से लड़ता हुआ आज जब वह हुआ जवान ,
तो चिंता के रूप मे उसे सताने लगे घर ग्राहस्ती और सामान।
उसके मन मे जोश है ,और वह चाहता है कुछ कर दिखाना ,
ऐसा जिसे देख कर दंग रह जाए सारा जमाना ।
हाँ आज उसने कर ही दिखाया ,
सभी के दिल मे अपना स्थान है बनाया ।
आज वह पहुँच गया है एक ऊँचे स्थान पर ,
तो वे भी उसे अपना रिश्तेदार कहते है ,रहता था वो जिनके माकन पर ।
कल तक वे ही लोग उससे सीधे मुँह करते नही थे बात,
क्योंकि कल तक थी उसके जीवन मे निरासा भरी रात
आज जब सफलता पाते हुए ,उसके जीवन मे आया है उजाला ,
तो वे भी उसके रिस्तेय्दर बन गए जिन्होंने पैसो के लिए उसके घर लगाया था ताला ।
अब उसे मिल रही है पग -पग पर सफलता ही सफलता
तो ऐसा लग रहा है जैसे वह भूल ही गया विफलता ।
पर आज उसे मौत ने है हराया ,
मिटटी से मिटटी का रास्ता है दिखाया ।
आज जब वो जिन्दगी से हारकर जा रहा है शमसान ,
तो शवयात्रा मैं शामिल लोगो को इसमे भी महसूस हो रही है अपनी शान ।
पीयूष वाजपेयी
ये क्या क्या हो रहा है
ये क्या क्या हो रहा है........ इंसान का इंसान से भरोसा खो रहा है, जहाँ देखो, हर तरफ बस ऑंसू ही आँसू हैं, फिर भी लोगों का ईमान सो रहा है। ...
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नजरिया क्या है ? एक शिक्षक ने जब ये सवाल अपने शिष्यों ये किया और मिले ढेर सारे जवाब , शिक्षक थोडा सा मुस्कुराया और बड...
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क्या दौर आया ज़माने का , कि हिसाब करने वाले बिक गए, सच और झूठ क्या है , ये बताने वाले बिक गए। आँखों से आँसू नहीं छलकते अब , क्या कहें...
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