ना जाने ये क्या हो गया है ,
दुनिया कुछ सिमट सी गयी है इन दिनों ,
सुबह से शाम हो जाती है ,
शाम से सुबह ,पर होता कुछ भी नहीं
इस बीच कुछ चहेरे याद आते हैं
मीठी सी याद छोड़ जाते हैं ,
ठहाको को याद कर हलकी सी मुस्कान तो आ जाती है ,
पर साथ ही इन आँखों को नम कर जाती है
क्लास तो अब भी है यहाँ
पर अब वो चहेरे नहीं रहे
नए चहेरों में भी उस पुराने चहेरे को दिल ढूंढ़ता है
पर नहीं मिलता वो सख्स जो रोज़ मिलता है .
संवेदना एक अभिव्यक्ति है ,उन सभी के लिए जो मुझसे किसी न किसी रूप में जुड़े हुए हैं , मेरे परिवारजन ,मेरे मित्रगण और वो तमाम लोग जो परोक्ष में मुझसे जुड़े हुए हैं....
Tuesday, August 31, 2010
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