Monday, August 17, 2015

क्या दौर आया ज़माने का , कि हिसाब करने वाले बिक  गए,
सच और झूठ क्या है , ये बताने वाले बिक गए। 
आँखों से आँसू नहीं छलकते अब ,
क्या कहें मृदु , शायद आंसुओं के पैमाने बदल गए। 
इंसानियत छोड़ , इंसान बदल गए ,
उस छोटे से कसबे में जो दिखते थे घर, वो मकाँ बदल गए। 
देखता हूँ उनको नहीं डरते गलत करने में ,
सोचते हैं गलत करने क अंजाम बदल गए। 
सच्चे हैं जो परेसान हुआ करते हैं ,
कोसते हैं , हमारे तो भगवन बदल गए। 
बदलाव का ये क्या मंज़र दिखाया तूने ,
देखते देखते लोगों के ईमान बदल गए। 

ये क्या क्या हो रहा है

ये क्या क्या हो रहा है........  इंसान का इंसान से भरोसा खो रहा है, जहाँ देखो, हर तरफ बस ऑंसू ही आँसू हैं, फिर भी लोगों का ईमान  सो रहा है।  ...