यूँ ही पड़ा हुआ था मैं ,
न होने का अहसास था ,
न ही न होने का गम
क्या था मैं ,सोचता हूँ गर कभी
तो बस जवाब आता है यही
होने भी , मेरे अस्तित्व के न होने का पर्याय था .
फिर अचानक मैं किसी की नजर में आया ,
जिसने मुझमें अनगिनत संभावनाएँ पायीं
हाँ वही जिसने एक भविष्य देखा मुझमें
हाँ मुझमें !
कैसे भूल सकता हूँ मैं उन कोमल हथेलियों को ,
जिसने मुझे बड़े प्यार से उठाया ,
एक मुस्कराहट थी उस चहेरे में ,
फिर उसने मुझे उन बड़े लोगों के बीच एक जगह दी
वो जगह जो मैंने कभी सोची नहीं थी .
वो मुझे हर जरुरी चीज़ देता था ,
पानी भी और खाना भी ,
रोज़ मिलने भी आता था ,
जो नहीं आया कभी तो मैं परेशान हो जाता था .
इन दिनों मैं बड़ा हो रहा था ,
उनकी भी नज़र में आ रहा था ,जिनकी नज़र में कभी नहीं आया था ,
कारण चूँकि बस उसने देखी थी मुझमें संभावनाएं ,
आजकल न जाने क्यों वो आता नहीं था ,
जब कभी आता भी तो बड़ा हाँफता था ,
बूढ़ा हो चूका था न
काफी दिन हुए आज , उसे आये
गलत गलत ख्याल आते हैं .
अब तो उम्मीद ही नहीं रही की वो आएगा .
अब कुछ नये लोग आते हैं ,
वही जिनकी नजर में मैं कभी आया नहीं था
काफी तारीफ करते हैं मेरी .
एक गर्व महसूस करता हूँ मैं ,
और कृतज्ञता ,बस उसके लिए
उसने ही तो मुझे एक बीज से पेड बनाया है ...............