Tuesday, October 11, 2011

यूँ ही पड़ा हुआ था मैं ,
न होने का अहसास था ,
न ही न होने का गम 
क्या था मैं ,सोचता हूँ गर कभी 
तो बस जवाब आता है यही 
होने भी , मेरे अस्तित्व के न होने का पर्याय था . 
फिर अचानक मैं किसी की नजर में आया ,
जिसने मुझमें अनगिनत संभावनाएँ पायीं 
हाँ वही जिसने एक भविष्य देखा मुझमें 
हाँ मुझमें !

कैसे भूल सकता हूँ मैं उन कोमल हथेलियों को ,
जिसने मुझे बड़े प्यार से उठाया ,
एक मुस्कराहट थी उस चहेरे में ,
फिर उसने मुझे उन बड़े लोगों के बीच एक जगह दी 
वो जगह जो मैंने कभी सोची नहीं थी .
वो मुझे हर जरुरी चीज़ देता था ,
पानी भी और खाना भी ,
रोज़ मिलने भी आता था ,
जो नहीं आया कभी तो मैं परेशान हो जाता था . 

इन दिनों मैं बड़ा हो रहा था ,
उनकी भी नज़र में आ रहा था ,जिनकी नज़र में कभी नहीं आया था ,
कारण चूँकि बस उसने देखी थी मुझमें संभावनाएं ,
आजकल न जाने क्यों वो आता नहीं था ,
जब कभी आता भी तो बड़ा हाँफता था ,
बूढ़ा हो चूका था न 
काफी दिन हुए आज , उसे आये 
गलत गलत ख्याल आते हैं . 
अब तो उम्मीद ही नहीं रही की वो आएगा .

अब कुछ नये लोग आते हैं ,
वही जिनकी नजर में मैं कभी आया नहीं था 
काफी तारीफ करते हैं मेरी .
एक गर्व महसूस करता हूँ मैं ,
और कृतज्ञता ,बस उसके लिए 
उसने ही तो मुझे एक बीज से पेड बनाया है ...............

Saturday, August 27, 2011

नज़रों का फर्क

तुम्हारी नज़रों ने आज अजीब सा अहसास दिला दिया ,
एक ही चीज़ में नज़रों का फर्क सिखा दिया . 
तुमने कुछ कहा  तो वो confidence है ,
हमने कहा तो "अधजल गघरी छलकत जाए" . 
तुमने हासिल किया तो वो achivement ,
हमने किया तो luck by chance 
तुमने expression दिए तो attitude 
हमने दिए तो कितना rude है
तुमने थोडा पाया तो बड़ा दिखाया
हमारा तो बड़ा भी -"हूँ ,ठीक... है"
तुमने कहा तो वो सच है 
हमारा तो सच भी झूठ है
तुम्हारी खोखली हंसी में सब हंस पड़े 
और मेरे गम में भी सब दूर रहे खड़े 
पर ऐ मेरे दोस्त वास्तिवकता में आओ 
सोओ नहीं अब जाग भी जाओ 
जहाँ मैं हूँ कल तुम होओगे 
तुम्हारी जगह कोई और होगा 
ये दुनिया का चक्कर बड़ा निराला है
यहाँ सफ़ेद कपड़ों वाला भी अन्दर से काला है
नहीं बक्शा इस दुनिया ने किसी को तो फिर तुम कैसे बचोगे 
इसलिए कहता हूँ जी सकोगे कल तब ही जब आज साधारण रहोगे 
पर हाँ ! आज तुम्हारी नज़रों .......
एक ही चीज़ में....


Friday, February 25, 2011

बेखबरी.......

बेखबरी में जीने की आदत हो गयी है ,

यूँ अकेले थे जब हम ,थे अकेले तब भी नहीं , 
पर अब भीड़ में भी  अकेले रहने की आदत हो गयी है ,

वो कहते हैं हमें क्यों हो दुखी 
दिल दुखाने की आदत जिन्हें हो गयी है  ,

बेखबरी में ...........

लोग कहते हैं हम से , बुरे हो तुम ,
रुलाने की आदत तुम्हे हो गयी है ,

खफ़ा अब हम नहीं होते उन पर ,
इलज़ाम लेकर मुस्कुराने की आदत हो गयी है .
बेखबरी में ...







ये क्या क्या हो रहा है

ये क्या क्या हो रहा है........  इंसान का इंसान से भरोसा खो रहा है, जहाँ देखो, हर तरफ बस ऑंसू ही आँसू हैं, फिर भी लोगों का ईमान  सो रहा है।  ...