Tuesday, August 31, 2010

ना जाने ये क्या हो गया है ,
दुनिया कुछ सिमट सी गयी है इन दिनों ,
सुबह से शाम हो जाती है ,
शाम से सुबह ,पर होता कुछ भी नहीं
इस बीच कुछ चहेरे याद आते हैं
मीठी सी याद छोड़ जाते हैं ,
ठहाको को याद कर हलकी सी मुस्कान तो आ जाती है ,
पर साथ ही इन आँखों को नम कर जाती है
क्लास तो अब भी है यहाँ
पर अब वो चहेरे नहीं रहे
नए चहेरों में भी उस पुराने चहेरे को दिल ढूंढ़ता है
पर नहीं मिलता वो सख्स जो रोज़ मिलता है .

Wednesday, April 28, 2010

" पाठशाला "

हाँ, सही पढ़ा पाठशाला । आज दोस्तों के साथ बैठे हुए अनजाने में ही कुछ बातें निकल पड़ी ,बस चाहता था उन्हें लिखना । अभी कुछ ही दिन पहले एक मूवी आई नाम "पाठशाला "। काफी अच्छे से चित्रांकन किया गया था आज कल की बदलती रितिओं का , स्कूलों में होने वाले उस बदलाव का जो आज की मांग हैं ,परन्तु साथ में समाज से एक प्रश्न भी पूछा गया था की क्या ये सब बदलाव जरुरी हैं ।

आज हर जगह पब्लिसिटी ही सब कुछ बन गयी है । हाँ अब मैं अपने मुद्दे की बात कर सकता हूँ । मुझे लगता है की पाठशाला मूवी से हमारे कॉलेज ने बहुत कुछ सिखा है । अरे , आप कितना पोसिटिव सोचते हैं , हमारे काल ने ये नहीं सिखा की education कैसे अच्छा किया जाए ,बल्कि हमारे कॉलेज ने सिखा है की पब्लिसिटी कैसे हासिल की जाए ।
मैं ये क्यों न कहूँ आखिर हर कोई ये कह रहा है ,और क्यों न कहे काम ही ऐसे हैं , एक दिन बहुत बड़ा advertisement आता है -"mega job fair " mahindra satyam , ncr,niit और भी कुछ companies के नाम ,अभी जोक ख़तम नहीं हुआ ,फिर एक इ-मेल आता है जिसमे किसी कंपनी का नाम होता है - microland & euclid ,और फिर दुसरे दिन हम कॉलेज पहुचते हैं now companies are ........... पता नहीं कोन-कोन सी थी ,
हाँ-हाँ बता रहा हूँ package ,(थोडा दिल थाम के बैठना क्युकी package कुछ ज्यादा था) 1.2 & दूसरी का सायद 1.5 .हम तो वापस आ गए पर आखिर सवाल एक ही आता है ये सब हो क्या रहा है ,तब कहीं किसी कोने से मेरे कानो में आवाज़ आई पाठशाला ।
हाँ ये पब्लिसिटी का ही तो तरीका था मेगा जॉब फेयर । आजकल ये मेगा जॉब फेयर पढ़ के हंसी आ जाती है । क्युकी मैंने सिर्फ आपने कॉलेज के ही मेगा फेयर देखे हैं ।
[:)]

Sunday, April 25, 2010

हमारे नेता

आज सुबह थी ,चारों ओर चुनाव की चर्चा ।
इसी दौरान मेरे हाँथ में आया एक चुनावी पर्चा ॥
पर्चे में थी नेता की घोषणा ,जिसमे लग रही थीं बातें झूठी ।
चूँकि पांच साल जो उसने किया उससे थी जनता रूठी ॥
ये नेता है पढ़ा लिखा जो जानता है जनता को मनाना ।
वह जनता है ,ये हैं अगय्नी बस इन्हें पिलाओ दारु और खिलाओ खाना ॥
नेता ने अभी चुनाव भी नहीं जीता था ,और रणनीति बनाने लगा समाज को लुटने की ।
एक बार जीतने तो दो ,वह नेता भी लेगा ट्रेनिंग समाज से रूठने की ॥
रूठेगा ऐसा ,की पांच साल तक जनता को देखेगा भी नहीं ।
मुंह मोड़ लेगा ,यदि जनता मिल भी जाये कहीं न कहीं ॥
खुद बनेगा मंत्री ,और सगे-सम्बन्धियों को नौकरी देगा सरकारी ।
उसे कोई चिंता नहीं होगी ,चाहे समाज में बड़े कितनी ही बेकारी ॥
आज ही अख़बार से पता चला की , पांच साल पहले एक गरीब किसान बना था मंत्री ।
और आज बिना मंत्री हुए भी ,उसके घर पहरा देते हैं संत्री ॥
एक संवाददाता इस मंत्री के पास पहुंचा ।
मंत्री जी ने भी interview देने का सोचा ॥
संवाददाता ने पूंछा-"आपकी अमीरी का है क्या राज़ "।
मंत्री ने कहा -"आपको मालूम नहीं ! हमारे सर प्रदेश सरकार का है ताज "॥
इस तरह संवाददाता ने पूछे और भी कई प्रशन ससक्त ।
होश उड़ गए संवाददाता के जब मंत्री ने किये जवाब व्यक्त ॥
अगले दिन जब संवाददाता ने इस साक्षात्कार को समाचारपत्र में छापा ।
जनता ने जब इसे पड़ा तो वो भी खो बैठी अपना आपा ॥
जनता अगर समझ जाए इस राजनीती का राज ।
तो समाज अग्रसर हो जाएगा विकास की ओर आज ॥
विकास की ओर आज ......

Sunday, March 7, 2010

नजरिया

नजरिया क्या है ? एक शिक्षक ने जब ये सवाल अपने शिष्यों ये किया और मिले ढेर सारे जवाब ,शिक्षक थोडा सा मुस्कुराया और बड़े सहज भाव से कहा -"बेटा ! यही है नजरिया मैंने एक सवाल तुमसे किया और तुम लोगो ने ढेर सारे उत्तर दिया , सबने अपने हिसाब से , बस यही है नजरिया "
कितनी आसानी से उस शिक्षक ने नजरिये की परिभाषा अपने बच्चों को सिखा दी पर आज लोग इस भीड़ भरी दुनिया में परेशान हैं तो वजह है सिर्फ -"नजरिया " हर किसी को बड़ा बनना है भीड़ में अपनी पहचान बनानी है , मैं ये कतई नहीं कहता की मुझे अपनी पहचान नहीं बनानी ,बनानी है ,पर थोडा अंतर है शायद अभी ये कहना छोटे मुह बड़ी बात होगी की कैसे मैं खुस हूँ मैं जैसा हूँ ,पर मैं भी इन्सान हूँ जब कभी परेशान होता हूँ तो सिर्फ इस नजरिये की वजह से , जाने क्यों मैं भी दोड़ने लगता हूँ सबके साथ पर हाँ छोटी- छोटी बातों से बहुत कुछ सीखना मुझे विरासत में मिला है आज मैंने एक ऐसे आदमी को देखा जिसके पैर नहीं थे और वो बंदा खुस था ,एक आदमी ने उससे कुछ पूछा तो उसने मस्त होकर जवाब दिया सामने वाला भी हसने लगा ,वो अपंग आदमी एक भिखारी था मैंने सोचा उसने अपनी जिन्दगी में कभी नहीं चाहा होगा की वो भीक मांगे , क्या उसे अपने अपंग होना का दुःख नहीं होगा पर मैंने जाना उसका नजरिया . "कितने लोग हैं जिनके हाँथ पैर दोनों नहीं है ,मेरे तो कमसे कम हाँथ है मैं घिसट के ही सही चल पा रहा हूँ पर उनका क्या वो बेचारे तो एक ही जगह पर जिन्दगी काट देते हैं ,कहीं जाना हो तो दूसरों पे निर्भर रहते हैं मैं उनसे तो बेहतर हूँ "
उस भिखारी ने एक सीख दे दी ,वो चाहता तो हम जैसे लोग जिनके पास भगवन का दिया सब कुछ है को देख के दुखी हो सकता था पर उसने चाहा वो रास्ता जिसमे सुखी रह सके ,ये है नजरिया
और हमारी हालत कुछ ऐसी है की १० की चाह मैं हम दोड़ते हैं जब हमें १० मिल जाते हैं तो हम १०० की चाहत में दोड़ने लगते हैं ,जब १०० मिल जाते हैं तो १००० की चाहत में , इस तरह हम पूरी जिन्दगी दोड़ते रहते है कभी समय ही नहीं निकल पाते ये देखने के लिए की हमारे पास क्या है "ज्यादा हमारी फितरत है " हम हमेशा भागते रहते है कुछ हासिल करने के लिए पर उसे देखते ही नहीं जो हमने हासिल किया है ,हम दुखी हैं इसलिए नहीं क्यूंकि हमारे पास फलानी वस्तु नहीं हम दुखी हैं क्यूंकि वो किसी दुसरे के पास है ,पर हम खुस रह सकते हैं ये सोच के की कितनी सारी चीज़ें हैं जो हमारे पास हैं पर दूसरों के पास नहीं , बस यही है "najariya"
DEDICATED TO MY FATHER
who teach me lesson of happiness

Tuesday, February 23, 2010

दूरियां

सुबह के सात बजे का समय रहा होगा । महाशय रविकिसन जी अपने घर के आँगन में बैठे समाचार पत्र के पन्ने पलटते हुए चाय की चुस्की ले रहे थे । अनायास ही एक लेख पर नजर चली गयी ,लेख का शीर्षक था "रिश्तों के बीच बढती दुरियाँ" । इस लेख में कुछ बाप - बेटों के उदाहरण दिए गए थे और शीर्षक को सपष्ट किया गया था । एक उदहारण पढ़ कर रविकिसन जी अपने भूतकाल में चले गए । --"रवि जरा इधर आओ " ,"जी हाँ बाबूजी " ये आवाज़ थी रविकिसन जी के पिताजी की -"सुनो कल तुम गाँव चले जाना और नोकारों को बुआई के लिए बीज दे आना ,कल तुम सुबह ही निकल जाना क्योंकि पैदल जाना होगा ,कल साइकिल राजेश ले जाएगा ,उसे कॉलेज जाना है । "
"जी हाँ बाबूजी "- रविकिसन जी ने उत्तर दिया ।
दुसरे दिन सुबह सुबह रविकिसन जी बोरी ले कर निकल गए । शाम को थक हारकर जब घर लौटे तो पता चला की बड़े भैया कॉलेज गए ही नहीं । गुस्सा तो बहुत आया पर शांत ही रहे । आखिर उनकी इतनी हिम्मत कहा जो पिताजी को कुछ बोल सकें । रात को जब सब बैठकर खाना खा रहे थे की तभी पिताजी की आवाज़ सुनाई दी -"राजेश तुम्हे आज कॉलेज जाना था न ! तुम गए नहीं । "
प्रतिउत्तर में बड़े भैया ने कहा -"हाँ पिताजी ,पर आज कोई नहीं आने वाला था,मुझे बाद में याद आया । "
पिताजी -"इस बात को तुम पहले ही बता देते तो अच्छा होता ,रवि आज गाँव तक बोरी लेकर पैदल ही गया था ."
उत्तर में भैया ने कुछ भी नहीं बोला । असल में पिताजी थोड़े स्वाभाव से गुस्सेल एवं काफी अनुसासन प्रिय ,मान-मर्यादाओ को मानने वाले हैं ।
बात वही ख़तम हुई ,सबने खाना खाया । यहाँ-वहां की बातें हुई और फिर सब अपने -अपने कमरे में जाकर सो गए । रवि किसान जी भी काफी थक चुके थे इसलिए जल्दी ही नींद लग गयी ।
करीबन आधी रात को रविकिसन जी की नींद अचानक खुली तो देखा की पिताजी उनके पैर दबा रहे हैं । असल में गाँव तक पैदल जाने के कारण उनके पैर में काफी दर्द हो रहा था और वो नींद में पैर पटक रहे थे उसी आवाज़ को सुनकर पिताजी उनके कमरे में आ गए । रविकिसन जी ने तुरंत पिताजी को हटाया ,अपने पैर खींच लिए ,परन्तु उन्होंने फिर उसी अनुशासन से रविकिसन जी को लिटा दिया और पैर दबाने लगे और कहा -"बेटा ! मुझे नहीं मालूम था की राजेश आज कॉलेज नहीं जाएगा ,बस इसलिए ....."
रविकिसन जी ने उन्हें वहीँ पर रोककर उनके पैर पकड़ लिए और कहा -"मुझे मालूम है पिताजी , आपको कुछ कहने की जरुरत नहीं ।" और बस रविकिसन जी की आँखों से आंसू आने लगे । पिताजी ने उन्हें शांत कराया और हाँथ फेरते हुए सुला दिया ।
तभी अचानक रविकिसन जी की भूतकाल की निद्रा टूटी और कानो में आवाज़ आई अपने बेटे मृदुल की -"पापा आज हमें कहाँ चलना है आपको याद है न ॥"
रविकिसन जी ने कहा -"कहाँ ?"
मृदुल ने कहा - " पापा आप फिर भल गए ! हम आज जू जाने वाले थे न "
रविकिसन जी ने कहा -"अरे हाँ । "
फिर रविकिसन जी को याद आया की अभी कल की ही तो बात है मृदुल ने अपने सारे दोस्तों को को मना कर दिया था जू जाने के लिए । वे सरे वहां मौज मस्ती के लिए जा रहे थे ,उसने कहा की मैं अपने पापा के साथ जाऊंगा ।

तभी रविकिसन जी को लेख लिखने वाले पर हंसी आ गयी और उन्होंने पन्ने पलटा दिए ....

ये क्या क्या हो रहा है

ये क्या क्या हो रहा है........  इंसान का इंसान से भरोसा खो रहा है, जहाँ देखो, हर तरफ बस ऑंसू ही आँसू हैं, फिर भी लोगों का ईमान  सो रहा है।  ...