अक्सर कुछ चहेरे मुझे ख्वाब मैं आया करते हैं ,
न जाने क्यों ,बे-वजह ही मुझे आजमाया करते हैं ,
कभी किसी बूढ़े की आंखों में ,
कभी किसी डरे हुए बच्चे की साँसों में ,
वो मुझे कुछ समझाया करते हैं ,
अक्सर कुछ ..............
दिन ढलते हैं ,
मौसम बदलते हैं ,
पर ये ख्वाब नही बदलते ,
यूँ ही कभी रस्ते पर चलते हुए ,
किसी भिकारी के चहेरे पर , ये मुझे अपना संदेशा सुनाया करते हैं ,
अक्सर कुछ .........
मैं नसमझ न समझा , अब तक इनकी जबानी ,
इशारों में इनके , तजुर्बों की कहानी ,
न समझा की ये मुझे क्या समझाया करते हैं ,
अक्सर कुछ .........
इक रात फ़िर वही सपना जब मुझे आया ,
तो मैंने अपना चेहरा ही उस चहेरे मैं पाया ,
वो तो बस 'न भुलाना अपने आपको' ये सिखाया करता था ,
अब मैं समझा की अपना चेहरा ही मुझे ख्वाब मैं आया करता था ॥
संवेदना एक अभिव्यक्ति है ,उन सभी के लिए जो मुझसे किसी न किसी रूप में जुड़े हुए हैं , मेरे परिवारजन ,मेरे मित्रगण और वो तमाम लोग जो परोक्ष में मुझसे जुड़े हुए हैं....
Saturday, December 5, 2009
Friday, December 4, 2009
अंतर्द्वंद
जिन्दगी बड़ी ही रोचक कहानी है ,चाहे वो किसी की भी हो मेरी या किसी और की । हर नया दिन नया पन्ना लगता है ,और हमेशा अगला पन्ना जानने की इच्छा बनी रहती है । जब भी जिन्दगी में दो रास्ते आ जाते हैं ,तो सामान्य आदमी भटक ही जाता है , जो चीज उन्हें भटकने से रोकती है वो है उनका "मूल्यांकन", वो कितना सच बोलते हैं अपने आपसे । आदमी दूसरों से झूट बोल सकता है पर अपने आप से नही ,और जिसने अपने आप से झूट बोलना सीख लिया उसका भटकना तो निश्चित है ।
पिछले कुछ दिनों से जिन्दगी इन्ही तरह के दोराहों से गुजर रही है । दिल किसी और को सही कहता है और दिमाग किसी और को । पर मैं जान चुका हूँ की दिल सही है या दिमाग । ये दिमाग मेरा है और इसने जो समाज में होते देखा है ,वही करना चाहता है ,क्योंकि बदले की भावना इसी दिमाग की उपज है । जिसने मेरे साथ जैसा किया उसके साथ वैसा ही करूँ ,चाहे वो अच्छा हो या ग़लत । ऐसा नही है की मेरा दिमाग सिर्फ़ ग़लत करने को कहता है ,जिसने मेरे साथ अच्छा किया ,उसके साथ उससे कहीं अच्छा करने को भी यही कहता है ।
पर ये दिल बड़ा अजीब है ,और सच मानिये कहीं न कहीं इस दिल में आपके माँ-बाप क संस्कार समाये हुए हैं ,जो आपको एहसास दिलाते रहते हैं की क्या सही है और क्या नही । और यहीं से शुरू होता है अंतर्द्वंद दिल और दिमाग का । पर सच तो यही है की इस दिल ने कभी झूठ नही बोला । ये दिल ही है जो ये कहता है की किसी और के लिए तुम कैसे बदल सकते हो । कोई तुम्हारे साथ कुछ भी करे , तुम हमेशा दूसरों के साथ अच्छा करना । अगर दूसरों ने तुम्हे बदल दिया तो इसका मतलब है की वो ज्यादा प्रवाभी हैं ,पर क्या ऐसा है ?
तुम इतने प्रवाभी बनो की तुम दूसरों को बदल सको दुसरे तुम्हे नही ......................
पिछले कुछ दिनों से जिन्दगी इन्ही तरह के दोराहों से गुजर रही है । दिल किसी और को सही कहता है और दिमाग किसी और को । पर मैं जान चुका हूँ की दिल सही है या दिमाग । ये दिमाग मेरा है और इसने जो समाज में होते देखा है ,वही करना चाहता है ,क्योंकि बदले की भावना इसी दिमाग की उपज है । जिसने मेरे साथ जैसा किया उसके साथ वैसा ही करूँ ,चाहे वो अच्छा हो या ग़लत । ऐसा नही है की मेरा दिमाग सिर्फ़ ग़लत करने को कहता है ,जिसने मेरे साथ अच्छा किया ,उसके साथ उससे कहीं अच्छा करने को भी यही कहता है ।
पर ये दिल बड़ा अजीब है ,और सच मानिये कहीं न कहीं इस दिल में आपके माँ-बाप क संस्कार समाये हुए हैं ,जो आपको एहसास दिलाते रहते हैं की क्या सही है और क्या नही । और यहीं से शुरू होता है अंतर्द्वंद दिल और दिमाग का । पर सच तो यही है की इस दिल ने कभी झूठ नही बोला । ये दिल ही है जो ये कहता है की किसी और के लिए तुम कैसे बदल सकते हो । कोई तुम्हारे साथ कुछ भी करे , तुम हमेशा दूसरों के साथ अच्छा करना । अगर दूसरों ने तुम्हे बदल दिया तो इसका मतलब है की वो ज्यादा प्रवाभी हैं ,पर क्या ऐसा है ?
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