Tuesday, February 23, 2010

दूरियां

सुबह के सात बजे का समय रहा होगा । महाशय रविकिसन जी अपने घर के आँगन में बैठे समाचार पत्र के पन्ने पलटते हुए चाय की चुस्की ले रहे थे । अनायास ही एक लेख पर नजर चली गयी ,लेख का शीर्षक था "रिश्तों के बीच बढती दुरियाँ" । इस लेख में कुछ बाप - बेटों के उदाहरण दिए गए थे और शीर्षक को सपष्ट किया गया था । एक उदहारण पढ़ कर रविकिसन जी अपने भूतकाल में चले गए । --"रवि जरा इधर आओ " ,"जी हाँ बाबूजी " ये आवाज़ थी रविकिसन जी के पिताजी की -"सुनो कल तुम गाँव चले जाना और नोकारों को बुआई के लिए बीज दे आना ,कल तुम सुबह ही निकल जाना क्योंकि पैदल जाना होगा ,कल साइकिल राजेश ले जाएगा ,उसे कॉलेज जाना है । "
"जी हाँ बाबूजी "- रविकिसन जी ने उत्तर दिया ।
दुसरे दिन सुबह सुबह रविकिसन जी बोरी ले कर निकल गए । शाम को थक हारकर जब घर लौटे तो पता चला की बड़े भैया कॉलेज गए ही नहीं । गुस्सा तो बहुत आया पर शांत ही रहे । आखिर उनकी इतनी हिम्मत कहा जो पिताजी को कुछ बोल सकें । रात को जब सब बैठकर खाना खा रहे थे की तभी पिताजी की आवाज़ सुनाई दी -"राजेश तुम्हे आज कॉलेज जाना था न ! तुम गए नहीं । "
प्रतिउत्तर में बड़े भैया ने कहा -"हाँ पिताजी ,पर आज कोई नहीं आने वाला था,मुझे बाद में याद आया । "
पिताजी -"इस बात को तुम पहले ही बता देते तो अच्छा होता ,रवि आज गाँव तक बोरी लेकर पैदल ही गया था ."
उत्तर में भैया ने कुछ भी नहीं बोला । असल में पिताजी थोड़े स्वाभाव से गुस्सेल एवं काफी अनुसासन प्रिय ,मान-मर्यादाओ को मानने वाले हैं ।
बात वही ख़तम हुई ,सबने खाना खाया । यहाँ-वहां की बातें हुई और फिर सब अपने -अपने कमरे में जाकर सो गए । रवि किसान जी भी काफी थक चुके थे इसलिए जल्दी ही नींद लग गयी ।
करीबन आधी रात को रविकिसन जी की नींद अचानक खुली तो देखा की पिताजी उनके पैर दबा रहे हैं । असल में गाँव तक पैदल जाने के कारण उनके पैर में काफी दर्द हो रहा था और वो नींद में पैर पटक रहे थे उसी आवाज़ को सुनकर पिताजी उनके कमरे में आ गए । रविकिसन जी ने तुरंत पिताजी को हटाया ,अपने पैर खींच लिए ,परन्तु उन्होंने फिर उसी अनुशासन से रविकिसन जी को लिटा दिया और पैर दबाने लगे और कहा -"बेटा ! मुझे नहीं मालूम था की राजेश आज कॉलेज नहीं जाएगा ,बस इसलिए ....."
रविकिसन जी ने उन्हें वहीँ पर रोककर उनके पैर पकड़ लिए और कहा -"मुझे मालूम है पिताजी , आपको कुछ कहने की जरुरत नहीं ।" और बस रविकिसन जी की आँखों से आंसू आने लगे । पिताजी ने उन्हें शांत कराया और हाँथ फेरते हुए सुला दिया ।
तभी अचानक रविकिसन जी की भूतकाल की निद्रा टूटी और कानो में आवाज़ आई अपने बेटे मृदुल की -"पापा आज हमें कहाँ चलना है आपको याद है न ॥"
रविकिसन जी ने कहा -"कहाँ ?"
मृदुल ने कहा - " पापा आप फिर भल गए ! हम आज जू जाने वाले थे न "
रविकिसन जी ने कहा -"अरे हाँ । "
फिर रविकिसन जी को याद आया की अभी कल की ही तो बात है मृदुल ने अपने सारे दोस्तों को को मना कर दिया था जू जाने के लिए । वे सरे वहां मौज मस्ती के लिए जा रहे थे ,उसने कहा की मैं अपने पापा के साथ जाऊंगा ।

तभी रविकिसन जी को लेख लिखने वाले पर हंसी आ गयी और उन्होंने पन्ने पलटा दिए ....

1 comment:

shashank said...

yes, you are right dear,
how you live your relations entirely depends on you, not on the trends of society.

ये क्या क्या हो रहा है

ये क्या क्या हो रहा है........  इंसान का इंसान से भरोसा खो रहा है, जहाँ देखो, हर तरफ बस ऑंसू ही आँसू हैं, फिर भी लोगों का ईमान  सो रहा है।  ...