Tuesday, October 11, 2011

यूँ ही पड़ा हुआ था मैं ,
न होने का अहसास था ,
न ही न होने का गम 
क्या था मैं ,सोचता हूँ गर कभी 
तो बस जवाब आता है यही 
होने भी , मेरे अस्तित्व के न होने का पर्याय था . 
फिर अचानक मैं किसी की नजर में आया ,
जिसने मुझमें अनगिनत संभावनाएँ पायीं 
हाँ वही जिसने एक भविष्य देखा मुझमें 
हाँ मुझमें !

कैसे भूल सकता हूँ मैं उन कोमल हथेलियों को ,
जिसने मुझे बड़े प्यार से उठाया ,
एक मुस्कराहट थी उस चहेरे में ,
फिर उसने मुझे उन बड़े लोगों के बीच एक जगह दी 
वो जगह जो मैंने कभी सोची नहीं थी .
वो मुझे हर जरुरी चीज़ देता था ,
पानी भी और खाना भी ,
रोज़ मिलने भी आता था ,
जो नहीं आया कभी तो मैं परेशान हो जाता था . 

इन दिनों मैं बड़ा हो रहा था ,
उनकी भी नज़र में आ रहा था ,जिनकी नज़र में कभी नहीं आया था ,
कारण चूँकि बस उसने देखी थी मुझमें संभावनाएं ,
आजकल न जाने क्यों वो आता नहीं था ,
जब कभी आता भी तो बड़ा हाँफता था ,
बूढ़ा हो चूका था न 
काफी दिन हुए आज , उसे आये 
गलत गलत ख्याल आते हैं . 
अब तो उम्मीद ही नहीं रही की वो आएगा .

अब कुछ नये लोग आते हैं ,
वही जिनकी नजर में मैं कभी आया नहीं था 
काफी तारीफ करते हैं मेरी .
एक गर्व महसूस करता हूँ मैं ,
और कृतज्ञता ,बस उसके लिए 
उसने ही तो मुझे एक बीज से पेड बनाया है ...............

4 comments:

swati suryendu said...

kehne ko bohot kuch hai in sab pe......magar kuch batein bolne se apna astitav kho deti hein............bas aapke articls aur poeams bohot achhe hein ..........har insaan ke man ko chu jane wale.....ya fir har insaan ke undar ki sachai bayaan karte hein......well done piyush.....keep it up....my best wishes r always wid u:)

vibhor said...

Great!! Lajabaw!!!

lalit said...

अप्रतिम, अनुपम, सुन्दर ढेरों शब्द हैं पर इन शब्दों से में इतनी सुन्दर रचना को बंधना नहीं चाहता|

samvedna said...

sabhi logo ko apna kimti samay nikal kar mujhe protsahit karne k liye dhanyawad :)

ये क्या क्या हो रहा है

ये क्या क्या हो रहा है........  इंसान का इंसान से भरोसा खो रहा है, जहाँ देखो, हर तरफ बस ऑंसू ही आँसू हैं, फिर भी लोगों का ईमान  सो रहा है।  ...