Saturday, October 18, 2008

"बचपन की यादें "

किसी के भी जीवन में यादों का बहुत बड़ा स्थान होता है , और उसमें भी बचपन की यादें ....,
वे तो भुलाये नही भूलतीं हैं । ये वो यादें हैं जिनमे हमने जीवन का असली मजा लिया है । आज हम बड़े हो गए हैं और मैं शायद मेरे जैसे कुछ और भी अपना मुकाम पाने के लिए ,घर के बड़े -बुजुर्गों का सपना पूरा करने के लिए अपने घर से दूर हो गए हैं .... तो ऐसे समय मैं साथ हैं तो बचपन की वो हसीन यादें.....

आज भी मुझे याद आता है अपना वो स्कूल जिसमें मैंने से केजी-१ से ८-वीं तक की पढ़ाई पूरी की । याद आता है उन सहपाठियों का चेहरा जिनके साथ बचपन के अच्छे -बुरे लम्हे बिताये ,याद आती है उन गुरुजनों की जिन्होंने मुझे आज इस स्थान में पहुंचाया । छोटी -छोटी बातों पर ठहाके लगाकर हँसना ,निष्कपट हर बात कह देना ,दोस्तों के गम में दुखी होना और उनकी खुसी में सरीक होना ,छोटी -छोटी बातों पर झगड़ना और बड़े-बड़े झगडों के बाद फ़िर मिल जाना ,लंच होते ही टिफिन खोलकर बैठ जाना और मिल बाँट कर फ़िर खाना । स्कूल से लोटते ही मम्मी -पापा का वो प्यार भरा दुलार ,वो सिर में हाथ फेरना ,होमवर्क कराना ,आज भी याद आती है वो निशचिंत नींद जो मम्मी -पापा के साए में ली थी ।

यादें आँखों में चमक लेकर भी आती हैं और आँशु भी पर हाँ उन आँशुओं का मजा ही कुछ और होता है । वे आँशु साक्षी हैं इस बात के की हम अभी भी अपनी यादों के आधार से जुड़े हैं ,क्योंकि जिसने अपनी यादें गवां दी उसने अपना बचपन गवां दिया और जिसके पास बचपन ही नही उसके पास जीवन ही नही ............

पीयूष वाजपेयी

ये क्या क्या हो रहा है

ये क्या क्या हो रहा है........  इंसान का इंसान से भरोसा खो रहा है, जहाँ देखो, हर तरफ बस ऑंसू ही आँसू हैं, फिर भी लोगों का ईमान  सो रहा है।  ...