Thursday, October 16, 2008

यादें



जिन्दगी आज मुझे है किस मोड़ मैं ले आई,


जहां मैं हूँ और है मेरी तनहाई ।


दूर -दूर तक बस दुःख की घटा नजर आती है ,


आँखों से अश्को की धरा बह ही जाती है ।


याद आते हैं वे गुजरे हुए दिन ,


जब हम पल भी न गुजारा करते थे यारों के बिन ।


याद आती हैं ,वे गलियां जिनमे बीता है बचपन ,


आज हम तो यहाँ है ,पर वहीं है हमारा मन ।


जिन्दगी क्यों ऐसे रूप लेकर आती है ,


दो पल की खुसी देकर जीवन भर सताती है ।


सिर पर माँ -बाप का रखा हाँथ नजर आता है ,


याद कर के ही ये दिल तड़पा जाता है ।


याद आती हैं जीवन की वो रस्में ,


याद आती हैं दोस्ती की वो क़समें ।


ये दिल तो बस ग़मों को पीता है ,


याद करके ही ये दिल जीता है ...... ।




पीयूष वाजपेयी

2 comments:

aashutosh said...

acha hai.......

Unknown said...

all d poems r really very gud keep writing ......

ये क्या क्या हो रहा है

ये क्या क्या हो रहा है........  इंसान का इंसान से भरोसा खो रहा है, जहाँ देखो, हर तरफ बस ऑंसू ही आँसू हैं, फिर भी लोगों का ईमान  सो रहा है।  ...