मिलन
डूबते हुए सूरज को देख दिल घबराया सा ,
रोशनी गई दूर ,अँधेरा पास आया सा ।
छितिज में अंधेरे और प्रकाश का हो रहा था मिलन ,
कुछ अँधेरा आगे बढ़ा ही की मचलने लगा प्रकाश का मन ।
देखते ही देखते प्रकाश ने अंधेरे का हाथ छोड़ दिया ,
बढता हुआ आगे अपना रास्ता मोड़ दिया ।
रात भर के लिए अंधेरा ,फ़िर हो गया अकेला ,
चारों तरफ़ दिखाई दे रहा था खामोसी का मेला ।
अब अंधेरे को है फ़िर उस सुबह का इन्तजार ,
जब प्रकाश से होगा उसका मिलन फ़िर एक बार ।
पल दो पल के ये मिलन तो हो रहें हैं सदियों से ,
मिलन के इन्तजार में क्या होता है उनका हाल
पूंछो इन पहाडो और इन नदियों से...
पूंछो इन पहाडो और इन नदियों से...
पीयूष वाजपेयी