Sunday, November 29, 2009

"सब से बड़ा complement "

इसे मैं सिर्फ़ इसलिए लिखना चाहता था , जिससे आने वाले कल से जब मैं अपने आप को मुड़ के देखूँ तो कुछ महसूस कर सकूँ । अक्सर लोग बड़े होते-होते इस दुनिया के हिसाब से ढलने लगते हैं ,अच्छे - बुरे से उन्हें कोई मतलब नही होता ।
खैर ये सब छोडिये मैं आपको उसकी कहानी बताने जा रहा हूँ , जो मेरे लिए आज तक का सबसे बड़ा कोम्प्लिमेंट है । मेरी coaching उस समय सुबह ६ बजे हुआ करती थी । वही coaching के पास एक चाय की दुकान थी सामान्यतः मैं वही पर चाय पिया करता था । उस दिन वो चाय की दुकान बंद थी और मैं थोड़ा जल्दी भी पहुँच गया था , तो मैंने सोचा क्यों न कुछ दूरी पर एक और चाय की दुकान है उस पर जाया जाए । मैं उसकी तरफ़ बढ चला । वो एक बुजुर्ग वृद्ध था जो की सुबह ५ बजे ही अपनी दुकान खोल लिया करता था । मैं पहुँचा चाय पी ,पर्स देखा तो सिर्फ़ १००-१०० क दो नोट थे , अब चाय थी ३ रुपये की उस वृद्ध आदमी के पास इतनी change नही थी उस बेचारे की बोहनी तो मैंने अपनी चाय से ख़राब कर ही दी ,ये उसके चहेरे से साफ़ दिखाई दे रहा था ,अखी क्या करता कह दिया बाद में दे देना । मैंने भी हाँ कह कर अपनी राह ली । सोचता रहा मुझे एक बार पैसे देख लेने थे , फ़िर सोचा कोई बात नही कल दे दूंगा ।
दुसरे दिन फ़िर मैं coaching गया , पर भूल गया । मैं ये बताना तो भूल ही गया मेरी coaching हफ्ते में दो दिन ही रहती है । अब एक हफ्ते बाद की बात हो गई । इस तरह मैं दुसरे हफ्ते भी गया ,और भूलता रहा ।
शायद आप ये सोचें की मेरी नियत ही न रही हो पैसे देने की ,और सोचना वाजिब भी है ,हो सकता है उस वृद्ध आदमी ने भी यही सोचा हो ,पर ये तो मैं ही जनता हूँ ,की ऐसा नही था ,बस मैं भूलता रहा ।
उस दिन न जाने मुझे कैसे याद रहा की आज मुझे उसके पैसे देने हैं ,क्योंकि सच में कहीं न कहीं मुझे ये बात बार - बार याद आती थी । मैं उसकी दुकान पहुँचा ,मैंने पूंछा -" दादा चाय कितने की है" ,असल मैं मुझे ये याद भी नही था की वो ४ रुपये में देता है या ३ रुपये मैं .उसने जवाब दिया -"३ रुपये की" ,और बस चाय भरने लगा । मैं तो चाय पी चुका था और बस पैसे देने ही गया था । पर मैं उसे मना नही कर पाया और चाय पी कर उसे मैंने ६ रुपये दिए और कहा -"दादा मैं एक चाय पहले पी गया था मेरे पास चिल्हर नही थी इसलिए दे नही पाया था ।"
मुझे नही पता की मैंने कोन सा बड़ा काम कर दिया , उसकी आँखों में कुछ अलग बात थी , उसने मुझसे पैसे लिए और कहा - " बेटा मुझे तो याद भी नही की तुम कब पी गए थे ,पर हाँ आज जो तुमने किया है वो कोई मामूली बात नही है ,कितने यहाँ ऐसे ही आते हैं जो केवल चाय पी के चिल्हर न होने का बहाना कर के चले जाते हैं ,पर तुम जैसे कुछ लोगो के कारन हमारा विस्वास आज भी बना हुआ है इस दुनिया में ......."
ना जाने उसने मुझसे क्या कह दिया था पर हाँ बहुत अच्छा लग रहा था ,ऐसा कुछ महसूस हो रहा था की मैंने कोई अच्छा काम किया है ...पर मैंने तो सिर्फ़ अपनी उधारी चुकाई थी ,जो मुझे मेरे मम्मी पापा ने सिखाया है कि बेइमानी कि कोई चीज़ कभी काम नही आती हमेशा इमानदारी से जिन्दगी जीना , और मैंने वही किया बस ।
पर उस वृद्ध कि आँखे मुझसे बहुत कुछ कह गई , बस अब यही चाहत है कि ये तो ३ रुपये कि बात थी ,पर जिन्दगी में यही चाहूँगा कि कभी जब लाखों कि बात हो तब भी में उस वृद्ध कि आँखे याद कर सकूँ ,वो मुझे अच्छा रास्ता ही चुनने में मदद करेंगी ........

आज में बहुत खुस हूँ ...........[:)]

2 comments:

Nitin Jain said...

me bhagvaan se pray karunga ki teri ye baat mere ko hamesa yaad rahe or me bhi kabhi beimani ki raah na chalun........thax

shashank said...

sometimes satisfaction works as great motivator. A man can can persue anything for true satisfaction.

ये क्या क्या हो रहा है

ये क्या क्या हो रहा है........  इंसान का इंसान से भरोसा खो रहा है, जहाँ देखो, हर तरफ बस ऑंसू ही आँसू हैं, फिर भी लोगों का ईमान  सो रहा है।  ...