Friday, April 11, 2008

"मिटटी से मिटटी का सफर "


एक आदमी मिटटी से करता है सुरु अपना सफ़र,

और मिटटी मे मिल जाता है ,आखिर जिन्दगी से हर कर।

इस रस्ते मे उसे माँ -बाप मिले और भी मिले कई रिश्ते ,

ये रिश्ते बड़े अनमोल है ,वो मूर्ख है जो इन्हे समझे सस्ते ।

बचपन मे माँ -बाप के साये के साथ उसने सफर किया है सुहाना ,

आज जब वह जवान है तो मुश्किल हो गया है वो सफर भुलाना ।

जिन्दगी से लड़ता हुआ आज जब वह हुआ जवान ,

तो चिंता के रूप मे उसे सताने लगे घर ग्राहस्ती और सामान।

उसके मन मे जोश है ,और वह चाहता है कुछ कर दिखाना ,

ऐसा जिसे देख कर दंग रह जाए सारा जमाना ।

हाँ आज उसने कर ही दिखाया ,

सभी के दिल मे अपना स्थान है बनाया ।

आज वह पहुँच गया है एक ऊँचे स्थान पर ,

तो वे भी उसे अपना रिश्तेदार कहते है ,रहता था वो जिनके माकन पर ।

कल तक वे ही लोग उससे सीधे मुँह करते नही थे बात,

क्योंकि कल तक थी उसके जीवन मे निरासा भरी रात

आज जब सफलता पाते हुए ,उसके जीवन मे आया है उजाला ,

तो वे भी उसके रिस्तेय्दर बन गए जिन्होंने पैसो के लिए उसके घर लगाया था ताला ।

अब उसे मिल रही है पग -पग पर सफलता ही सफलता

तो ऐसा लग रहा है जैसे वह भूल ही गया विफलता ।

पर आज उसे मौत ने है हराया ,

मिटटी से मिटटी का रास्ता है दिखाया ।

आज जब वो जिन्दगी से हारकर जा रहा है शमसान ,

तो शवयात्रा मैं शामिल लोगो को इसमे भी महसूस हो रही है अपनी शान ।

पीयूष वाजपेयी

3 comments:

vibhor said...

bahut achchha kya khoob likhte ho bhai , likhte rahoo

Unknown said...

tu to apna purana kavi hai.
chare me jhlakta ravi hai.
chahe aadmi ka kahi bhi anta ho,
par teri mitti ka safar anant ho.
tune to bana li website hai,
samjhle future tera bright hai.

shiks said...

tum to writer b ho Mr. padaku :P

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